सुपर-30: समाज के लिए, समाज के द्वारा चलाई जा रही सामूहिक प्रयास है, यह किसी व्यक्ति विशेष की नहीं है- प्रशांत चौबे

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छात्र जीवन मे सपनों का अपना एक अलग व महत्वपूर्ण स्थान है। सपने छात्रों को  जीवंत बनाये रखते है और यही जीवंतता उन्हें अपने लक्ष्य के लिए प्रेरित करती है। सपने परिस्थितियों के मोहताज नहीं होते। हरिवंश राय बच्चन की कुछ पंक्तियाँ सहज ही याद आती हैं —

‘‘कौन कहता है कि स्वप्नों को न आने दे दृगों मेें

देखते है सब इन्हें अपनी उमर अपने समय में ’’

मेरा नाम प्रशांत चौबे है, मैं औरंगाबाद जिले में ओबरा थानांतर्गत रतवार गांव का निवासी हूँ। मेरे पिता श्री कृष्ण नंदन चौबे है। मैं ‘सुपर-30’ के 2005-06 के बैच का छात्र था और मैंने आईआईटी दिल्ली से सिविल में बी.टेक किया है। यादों के झरोखे के साथ आपको लिए चलता हूं अपने सफर पे:-

मेरी स्कूल की पढ़ाई 8वीं कक्षा से आरंभ हुई, इसके पहले मैं ज्यादातर घर में ही अपने पिता के मार्गदर्शन में पढ़ा करता था। मेरे पिता ने बी.आई.टी. सिंदरी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में  बी.ई. किया हैं। पिता जी अपने रोजगार संबंधित संघर्ष के लिए ज्यादातर पटना रहते थें और हम पूरा परिवार गाँव में। कभी-कभी गाँव के ही स्कूल में दादा जी भेज दिया करते थे। जहाँ कभी पीपल के पेड़ तले बोरे पर बैठ कर पढ़ाई करता था। थोड़े बड़े होने पर सभी बड़ों का खासकर पिता जी का ध्यान मेरे पढ़ाई पर गया। आनन-फानन में हम सभी पटना आ गए तथा पटना हाई स्कूल (शहीद राजेन्द्र हाई स्कूल) गर्दनीबाग में 8वीं कक्षा में नामांकन हुआ। पिता के मार्गदर्शन तथा स्वाध्याय के बदौलत 10वीं कक्षा पास की। इंजीनीयरिंग में रूची स्वाभाविक था, पर बी.टेक आईआईटी से ही करना था। ऊँची उड़ान भरनी थी।

शिक्षित पिता ने रोजगार संबंधित अपने संघर्ष के अनुभवों से यही बताया कि सपने जितने बड़े होंगे, परिस्थितियाँ उतनी ही प्रतिकुल। किसी तरह से गुजारा करने वालों को सपने ही तो सान्तवना देते हैं। आईआईटी में दाखिला, मेरे परिवार का सपना और जरुरत दोनो ही थे। सपनों के पीछे चलने की सोचा तो पता चला कि तैयारी की रकम इतनी ज्यादा है कि माता-पिता को बता भी नहीं सकते थे। इसी बीच समाचार पत्र तथा कुछ विद्यार्थियाें के माध्यम से पता चला कि अभ्यानन्द सर जो कि आई.पी.एस. अधिकारी हैं एक संस्था सुपर-30 चलाते हैं जिसमें निर्धन मेद्यावी छात्रों को मुफ्त में शिक्षा व रहने की सुविधा दी जाती है। ये भी पता चला कि वहाँ से काफी बच्चे आईआईटी जा भी रहे हैैं। सुपर-30 का फॉर्म भरा, परीक्षा दी तथा चयनित भी हुआ। सुपर-30 में चयनित होकर ऐसा लगा मानो अब तो आईआईटी जाना तय हो गया।

मैंने सुपर-30 के पहले अपनी पढ़ाई खुद ही की थी। हालांकि के.सिंह सर का सहयोग ऑरगेनिक केमिस्ट्री में लिया था। मुझे आज भी सुपर-30 का पहला दिन याद हैं। हमारे सारे सुपर-30 के मित्र अपना-अपना सामाना लेकर आ रहे थे। कुछ तो इतने गरीब परिवार से थे कि अपना सारा सामान खाद के प्लास्टिक बोरे में लेकर आए थे। कुछ ही दिन में पता लगा कि ज्यादातर बच्चे बहुत निर्धन तो थे पर फिजिक्स, केमिस्ट्री और गणित के सवाल सहज ही बना लेते थे। धीरे-धीरे हमारी आपस में दोस्ती हो गई और हमसब अपने-अपने सपनें को साकार करने में लग गए। हमसबो की स्थिति लगभग एक सी ही थी। सुपर-30 में हर दिन टेस्ट हुआ करता था। टेस्ट देते वक्त हम सारे दोस्तों मे घोर प्रतिस्पर्धा हुआ करती थी पर टेस्ट खत्म होते ही हम सब एक दूसरे कि सहायता करने लग जाते थे एकदूसरे के शिक्षक बन जाया करते थे। एक सवाल का अनेक प्रकार से हल किया करते थे। जो गलतियाँ हुआ करती थी उसे सुधारने में लग जाते थे। स्थिति करो या मरो की थी। दिन-रात हम सारे दोस्त पढ़ाई-लिखाई में ही गुजारते थे। मैं गणित में कठिनाई महसूस करता था। शुरूआती दिनों में आनंद सर का गणित का क्लास किया करता था। पर बहुत सुधार नहीं हुआ तो गणित खुद ही पढ़ना बेहतर समझा। इसमें कुछ साथियों ने ही सहयोग किया जब भी गणित के किसी कठिन सवाल में उलझ जाता तो कृष्णा कुमार (जो अभी अस्टिेंट कमिश्नर है) से डिस्कस करता था। फिजिकल केमिस्ट्री के किसी सवाल में उलझने पर पंकज कपाडि़या से सहायता लेता था। हम सब एक-दूसरे को हर सम्भव मदद किया करते थे। जब कभी मन में ये प्रश्न आता कि क्या हम सफल होंगे? तब संतोष जी एवं विक्रांत जी ने सुपर-30 के समय हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाया। तब हम सब आपस में ही एक-दूसरे का मनोबल बढ़ाया करते थे।

अभ्यानंद सर (तत्कालीन ए.डी.जी. हेडक्वॉटर) के आगमन से मानों हम सब आत्मविश्वास से ओतप्रोत हो जाया करते थे, उनके साथ डिस्कशन करके बड़ा मजा आता था। हम सभी लोग जमीन पर बैठ जाया करते थे और उनकी बातों को बहुत गौर से सुना करते थे। फिजिक्स मेरा अच्छा था पर उनसे फिजिक्स सुनने के बाद मेरा फिजिक्स के प्रति नजरिया ही बदल गया। अब मैं फिजिक्स को और फिजिक्स के प्रॉब्लम को ऐनालाइज करने लगा। अब कठिन सवाल का आसान हल दिखता था। मुझे याद है उन्होंने कहा था कि

आईआईटी फिजिक्स, केमिस्ट्री और गणित का टेस्ट नहीं है ये टेस्ट आपके जिद् और कॉन्फिडेंस का हैं।

वे टेस्ट पर बहुत जोर दिया करते थे। अब जबकि मैं खुद अपनी एक संस्था (आईआईटीयन्स तपस्या) चला रहा हूँ तो मुझे उनकी बात समझ व उस बात की महत्ता समझ आती हैं। बहुत सारे टेस्ट देने की वजह से हमने लगभग हर तरह का सवाल सभी विषयों में बना लिया था, सारी गलतियाँ कर ली थी और उन गलतियों से सिख भी लिया था। आईआईटी के एग्जाम में ऐसा लग रहा था कि जैसे हम सुपर-30 का ही टेस्ट दे रहे हाें। आईआईटी के इंट्रेंस इक्जाम में सफल होने के बाद अभ्यानंद सर के कहने पर मैंने आईआईटी दिल्ली में एडमिशन लिया। बड़ी प्रबल इच्छा थी कि आई.ए.एस. अधिकारी बनकर समाज के लिए कुछ कर सकूँ। दिल्ली जाने के बाद अपना खर्च चलाने के लिए पढ़ाना शुरू किया, और प्रथम वर्ष में ही हमारे एक छात्र ने आईआईटी में ऑल इण्डिया रैंक 22 हासिल किया। इस सफलता ने मेरे अंदर के शिक्षक को जीवंत कर दिया व इसके बाद मेरी रूची अध्यापन में बढ़ गई और मैंने पढ़ाना ही उचित समझा। कुछ ही समय बाद मेरे दुसरे विद्यार्थी ने ऑल इण्डिया रैंक 31 हैं।

कुछ ही समय बाद मेरे दुसरे विद्यार्थी ने ऑल इण्डिया रैंक 31 हासिल किया। अब ये निश्चित हो गया कि पढ़ाना ही हैं। इसी दौरान अभ्यानंद सर से मिला और उनसे अपने मन की सारी बाते कहीं, उनका बस एक ही कहना था कि समाज ने आपको इस लायक बनाया है, समाज ने आपके लिए किया है अब आपकी बारी है समाज को लौटाने की, आप जैसे चाहे लौटाएँ। उस दिन मैंने ठान लिया की बिहार में जो निर्धन मेद्यावी छात्र है उनके सपने को पुरा करने के लिए उनकी गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए संघर्ष करूँगा। अपनी उसी सोच पर मैं रहमानी-30 से भी जुड़ा हुआ हूँ। अपने संस्था में सुपर-30 के कॉन्सेप्ट पर भी काम कर रहा हूँ। 

अब जब कि आईआईटी से पास हुए 8 साल गुजर गए है, इस दौरान काफी कुछ देख-समझा, वापस पलट कर देखता हूँ तो मन में एक सवाल आता हैं कि ‘सुपर-30’ है क्या? क्या यह एक संस्था मात्र है जो 30 सुविधवंचित बच्चों को चयनित करके आईआईटी भेजती हैं या कहीं उससे कहीं ज्यादा? मुझे ऐसा लगता हैं कि

सुपर-30 एक उदाहरण है जहाँ समाज के सक्षम लोग समाज के वंचित मेद्यावी छात्रें का भविष्य बना रहे हैं। सुपर-30 की सफलता इस बात का प्रमाण है कि समाज के पास समाज के हर समस्या का समाधान हैं। जरूरत है सक्षम लोगों को नेतृत्व करने की, आगे आकर पहल करने की, ‘सुपर-30’ एक सफल प्रयोग था और इस प्रयोग को समाज के हर क्षेत्र में सफलतापूर्वक किया जा सकता हैं।

‘सुपर-30’ किसी व्यक्ति विशेष की अमानत नहीं हैं, ये वास्तव में सामाजिक एकता का एक अद्भुत उदाहरण हैं कि समाज का हर व्यक्ति जो किसी भी तरह से सक्षम हो वो समाज के वंचित वर्ग का उत्थान कर सकता हैै। समाज के हर समस्या के समाधान के लिए इस तरह के प्रयोग किए जाने चाहिए। केवल शिक्षा में ही नहीं स्वास्थय में भी समाज काफी कठिनाईयों से गुजर रहा है। शिक्षा में भी केवल इंजीनियरिंग तक ही सीमित न रखते हुए इसे हर स्तर पे लागु किया जाना चाहिए। छोटे बच्चों जो कि पाँचवी, छठी कक्षा में पढ़ते हों उन बच्चों के साथ भी इस तरह के प्रयोग होने चाहिए, इस से उनकी प्रतिभा और निखरेगी व परिणाम दूरगामी किन्तु समाज लाभान्वित होगा।

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 सुपर-30 के नाम पर कुछ लोगों का महिमा मण्डन किया जा रहा है। ऐसा दिखाया जा रहा हैं कि कुछ लोगोे की वजह से ‘सुपर-30’ है और उनके बाद सुपर-30 नहीं होगा, जो कि उचित नहीं है। ‘सुपर-30’ समाज के लिए समाज के द्वारा बनाई गई संस्था हैं, जिसका आधार आपसी सहयोग व एकता, भारतीय गुरुकुल परंपरा को दर्शाती गुरु-शिष्य का भावपूर्ण संबंध है। यह सामाजिक भिन्नताओं की खाई को पाटती हुई समाज का, समाज के लिए, समाज के द्वारा चलाई जा रही सामूहिक प्रयास है, यह किसी व्यक्ति विशेष की नहीं है।

This Post Has One Comment

  1. Anonymous

    सर मुझे आपके फोन नंबर चाहिए क्योंकि मेरा बच्चा 12वीं कक्षा में साइंस मैथमेटिक्स पढ़ रहा है और मैं पैसा वाला नहीं हूं इसलिए मेरे बच्चे को सुपर थर्टी में भेजना चाहता हूं

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