सफर मेरा :- तुझसे परे, साथ तेरे !!!
जुगणुयों जैसा था मैं, छोटा सा परन्तु प्रकाशवान, लघु सा, पर विचरने वाला पूरा अकल्पनीय अथाह आसमान, ताजे हवाओं की भांति यहाँ से वहाँ गतिमान, सपने थे कुछ मेरे भी, लक्ष्यों से परे, दिलों की मंजिले सरीखे, अपनों में पला, बढ़ा, सबकी आंखों का तारा, माँ का प्यार, बाबा का अभिमान, भाई-बहनों का भरोषा, दोस्तो …