नारी शिक्षा : स्वतंत्रता की कुंजी

हमारा देश एक पुरुष प्रधान देश है, वैसे स्त्रियाँ भी अब समाज के अहम् फैसले लेने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है, पर यह अनुपात संतोष जनक नही है। हमारे समाज को इस सामायिक परस्तिथि में आने में बहुत वक़्त लगा है। मोहन्जोद्रो सभ्यता नारी प्रधान थी। उस समय नारी को सृजनकर्ता माना जाता था। नारी आपना कर्म आज भी नही भूली लेकिन समाज का नजरिया बदल गया है। नारी प्रधान समाज का पुरुस प्रधान समाज में परिवर्तन ,कुछ कुटिल अनुभवी समाज के ठेकेदारों की नियमो से धीरे धीरे पड़ने वाला प्रभाव है। आप इतिहास की पन्ने पलट कर देखे तो हमें पूरी तरह अहसास हो जायेगा की कैसे कैसे सडयंत्र हुआ है। सबसे बड़ा कूटनीति उस समय हुआ जब स्त्रीयों को शिक्षा से परे रखा जाने का निर्णय किया गया। चाहे वह हिन्दू धर्म हो या कोई और हर जगह स्त्रीयों का शिक्षा ग्रहण करना वर्जित था। इतिहास में सिर्फ यह प्रमाण मिलता है की उस समय स्त्रियों को पूराण का पढ़ करना वर्जित था वो केवल मंदिरों में जाकर इसका श्रवन कर सकती थी।

 किसी भी वयाक्तिविशेष का विकास मुख्यतः दो चीजो से होता है (1) समाज (2) शिक्षा इन दो घटकों में बहुत पुराने समय में स्त्रियों को एक घटक से दूर रखा गया और पुरुषो के विकास दोनों घटकों से किया गया। और यह मतभेद हमारे समाज को पुरुषप्रधान बनाने के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी है। धीरे धीरे पुरुस अपना वर्चस्व पाते गये और फिर ऐसे नियमों का चलन सुरु करते गये जिससे स्त्रिया केवल प्रयोग की वस्तु रह गई। पर नियति को नारी अपमान रास नही आया और फिर नारी उथान की प्रक्रिया सुरु हुई। पर वो इतने पीछे चले गए की हम 1000 वर्सो में भी इस खाई को पार नही सके। वैसे अभी की स्तिथि सुखप्रद तो है पर संतोष जनक नही। आज भी 90% लोगो की सोच वैसे ही पुराणी और रुढ़िवादी है। अधिक्तर शिक्षित और अशिक्षित पुरुष महिलाओ को अपने बराबर दर्जा नही देते। और अगर हम दूसरी तरफ देखे जहा स्त्रियाँ शिक्षित है वो अपना हक़ खुद छीन लेती है और पुरुषो को उन्हें मजबूरन अपने बराबर देखना ही पड़ता है। आज भी पुरुस औरतों को अपने से छोटा दिखाने के लिए वैसे ही नियम लाते है जिससे वो अपंग बनी रहे, इसका जीता जागता उदाहरण है “लेडी फर्स्ट” रूल। जो महिलाये नासमझ है उन्हें ये हित में लगता होगा लेकिन जो अपने समझदारी में गुमान करती होगी उन्हें जब कोई पुरुष द्वारा एटीएम की लाइन में पहले जाने का कथन, सरे बदन को आग लगा देता होगा, और एक बार उन्हें अपनी दुर्बलता का अहसास हो जाता होगा। महिलाओ की इस समाज में हिन् दृष्टी की भावना का पता आप इस से लगा सकते हो की लोग लड़की होने पर भूर्ण हत्या करवा देते है।

महिलाओ पर इस गुलामी का एक मात्र उपाय है शिक्षा। महिलाए शिक्षित हो और अपने पैरो पर खड़े हो सके तो फिर वो अपनी गुलामी की जंजीर तोड़ सकती है। महिलाओं के शिक्षित न होने का सबसे अधिक भारत वर्ष के ढोंगी बाबा लोग उठाते है। उदाहरण के तौर पर आप आसाराम बापू और बहुत सारे ढोंगी बाबा भरे पड़े हमारे देश में। दूसरा फायदा नेता लोग उठाते है अपने वोट के लिए। पर हम नारी शिक्षा के पथ पर अग्रसर है। बहुत सारी योजनावो को नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लागु किये गए है और उनका फायदा भी देखने को मिल रहा हमें। नारी साक्षरता दर की तेजी से बढ़ना इन योजनाओ की सफलता दिखाती है। और अगर हमारे नेतागणों की दया दृष्टी रही तो जल्द ही पुरुस और स्त्री एक समान होकर देश की विकाश में योगदान देंगे।

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