गोली सरहद पे खा रहा है कोई

  • Post author:
  • Post category:Poetry
  • Reading time:1 mins read

बेसबब मुस्कुरा रहा है कोई।
दर्द शायद छुपा रहा है कोई।।

सर्द मौसम में ज़र्द पत्तों सा।
ख़्वाहिश-ए-दिल जला रहा है कोई।।

माँ के जाने के बाद भी मुझको।
दे के थपकी सुला रहा है कोई।।

घर सजाने के वास्ते घर से।
शै पुरानी हटा रहा है कोई।।

साँस छूटे तो ज़िस्म हो आज़ाद।
धड़कनों को सुला रहा है कोई।।

घर तुम्हारा है काँच का सारा।
पत्थरों को दिखा रहा है कोई।।

अब न मंज़िल की जब रही ख़्वाहिश।
राह फिर क्यूँ बता रहा है कोई।।

सारे झगड़े ही मिट गए अब तो।
जीस्त से दूर जा रहा है कोई।।

हम ‘आतिफ’ हैं चैन से सोए।
गोली सरहद पे खा रहा है कोई।।

Leave a Reply