जब मुहब्बत करो तो बेहद हो

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इश्क़ में फ़ासला नहीं रखते,
खुद से तुम को जुदा नहीं रखते.

एक सूरज रखा है पास अपने,
साथ अपने दिया नहीं रखते.

हैं खुलेआम बेवफ़ाई पर,
पर्दा भी बेहया नहीं रखते.

वो ज़माने का साथ लेते हैं,
हम कोई आसरा नहीं रखते.

वक़्ते आख़िर भी देख अकेले हैं,
हम कभी काफ़िला नहीं रखते.

हम मुहब्बत में जिन की हैं बीमार,
वो भी अपनी दवा नहीं रखते.

जब मुहब्बत करो तो बेहद हो,
इश्क़ में इन्तिहा नहीं रखते.

हमने हसनैन उन को है चाहा,
पास में जो वफ़ा नहीं रखते.

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