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दलितों पे शियासत

आज कल कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव नजदीक है. ये चुनाव जितने के लिए हर पार्टी अपनी ऐडी-चोटी एक कर दी है . इन जगहों पे चुनाव बहुत ही अहम चुनाव माना जाता है क्योकि इन राज्यों में चुनाव जितने के लिए दलित मतदातओं को एक जुट कर, लुभा कर उनका एक–एक वोट लेना होता है उतर-प्रदेश, .पंजाब और गुजरात ये सब ऐसे राज हैं जहाँ दलित मतदातओं की जनसंख्या अधिक हैं. इन राज्यों के जनता सभी पार्टिओं के भ्रमन और वादों से उलझन में हैं. जैसा की हम सब जानते हैं की 20.5% दलित जनसंख्या हैं उतर –प्रदेश में . वहीँ गुजरात में 7% दलित जनसंख्या हैं . वहीँ अगर हम पंजाब की बात करे तो वहां 32% दलित जनसंख्या हैं. जो भारत के सारे राज्यों से सर्वाधिक हैं.

भारत में जहाँ दलितों को हिन दृष्टि से देखा जाता हैं, वहीँ वोट के लिए सभी पार्टी के नेता उनके घर जाकर कोई खाना खा रहा हैं तो कोई चाय पि रहा हैं, तो कोई उन्हें अपने आप को उनका शुभचिन्तक बता रहे हैं. आज कुछ पार्टी उनके बिच जाकर उनके हक़ की बात कर रहे हैं. अगर हम थोरी देर के लिए चुनावी सरगमी से बाहर निकले तो हम आज भी दलितों के घर जाना पसंद नहीं हैं. पानी पीना और खाना तो बहुत दूर की बात हैं, हम आज भी दलितों को अपने बराबरी में नहीं बैठाते हैं. लकिन हम चुनावी सरगमी की बात करे तो शियासत /कुर्सी पाने के लालच में बारी–बारी से पार्टिओं के नेता दलितों के घर जाकर कोई चाय पि रहा हैं तो कोइ खाना खा रहा हैं वो भी उनके साथ उनके चारपाई पे बैठ कर. आज जब विधानसभा चुनाव नजदीक है तो कोई उनका सबसे बड़ा सुभचिन्तक बता रहा है तो कोई सरकों पे उतरकर उनको लुभाने का हर सम्भवों कोशीस कर रहा है. सभी राजनितिक पार्टियाँ उनको लुभाने के लिए उनके बिच के किसी नेता को अपने पार्टी संगठनो में अछे पोस्ट पे रख रहे हैं. जिससे उस पार्टी को उस छेत्र की सभी दलित वोट उस पार्टी को मिले.

अभी हाल ही में उतर –प्रदेश के चुनावी मौसम में हमें ये सुनने को मिला है की बहुजन समाज पार्टी के कटटर समर्थक रामजीवन गौतम है . वे कही भी अपने आप को बहुजन समाज पार्टी के कट्टर समर्थक बताने से पीछे नही हटते है. लेकिन आज कल वे बहुजन समाज पार्टी से खफा है, क्योकि इस पार्टी का कोई भी नेता उनके इलाके में आकर इनसे हालचाल नही पूछा, मुलाकात नही की. लेकिन इसी समय भाजपा के बड़े–बड़े नेता उनके बिच जाकर अपने आप को उनका सुभचिन्तक बता रहे है. इन सभी के बिच भाजपा ने उनके बिच एक रथ भेजा है . जिस पर डॉ भीम राव अम्बेडकर और गौतम बुद्ध की प्रतीमा बनी हुई थी. भाजपा के इस नए चाल से दलित समाज के लोग सोचने पे मजबूर हो गये है . वहीँ दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी में अधिकांश नेता दलित के है तो उन्हें लगता है की दलित वोट तो हमें मिल ही जायेगा. लेकिन इस चुनाव में ऐसा नही है, क्योकि दलित भी आगे बढ़ना चाहते हैं, वो भी आगे आना चाहते हैं. क्या ये संभव है , या ए माहौल चुनावी शियासत तक ही रह जाएगी या सचमुच अब वे आगे बढ़ेंगे अभी तक ये एक पहेली बना हुआ है.

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