ठण्ड का मौसम है। सर्दी अपने रिकॉर्ड तोड़ रही है। ऐसे में गजक को कौन भूल सकता है। गजक जिसको गरीबों का मेवा भी कहा जाता है, दुनिया भर खासकर भारत में बड़े चाव से खाई जाती है। यूँ तो गजक पुरे भारत में बनती है मगर ग्वालियर मुरैना में बनी गजक अपने स्वाद के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। खस्तापन में यहां की गजक की अपनी अलग ही पहचान है।
दुनिया के हर कोने में पहुँच चूका है यह देसी प्रोडक्ट: गजक भारतीय सांस्कृतिक खाने का एक अहम अंग रहा है। मूंगफली के दानों से बनने वाला यह प्रोडक्ट आज पूरी दुनिया में फैल चूका है। गजक निर्माताओं की माने तो गजक आज पूरी दुनिया में एस्पोर्ट किया जाता है। इंडोनेशिया, जापान सहित पुरे एशिया में और यहां तक की यूरोप में भी गजक निर्यात की जा रही है।
अकेले ग्वालियर मुरैना में ही लोग खा जाते हैं साढ़े पैंतीस लाख रुपये की गजक: सर्दी में गजक खाने का मजा हर भारतीय लेता है। अकेले ग्वालियर मुरैना में ही लोग 35.50 लाख रुपये की गजक चट कर जाते हैं। गजक का बिजनेस यहां अपने चरम पर है। यहाँ के हर स्टोर यहां तक की सड़क किनारे खड़ी रेहड़ियों पे भी आपको गजक दिख जायेगी।
सस्ती नहीं है गजक: गजक के स्वाद के साथ इसका मूल्य भी मजेदार है। गजक 200 से 600 रुपिये प्रति किलो के हिसाब से बेचीं जाती है। गजक में मिलाये जाने वाले विभिन्न खाद्द पदार्थ इसका मूल्य तय करते हैं। गजक गजक कारोबारियों की माने तो गजक इंडस्ट्री आज 50 करोड़ की हो चुकी है।
मूंगफली के दानों से बनती है गजक: गजक को गुड़ शक्कर और मूंगफली के दानों से तैयार किया जाता है। स्वाद के हिसाब से गजक में विभिन्न खाद्द पदार्थ जैसे तिल वगैरह भी डाले जाते हैं। यही सब गजक की वेरायटी भी तय करते हैं। इसका मूल्य भी इसमें डाले जाने वाली चीजें ही तय करती हैं।
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