पकौड़ा और रोजगार

आपन देश में अभी एक सियासी बयान ना जाने केतना लोगन के मुह पनिया देले होई, आउर लपलपईल जीभ सब कोई के उस उ बात पर बोले खतिरा विवश करत बा| ऐसही कुछ विवशता हमरो संगे बा और बैठ गईनी ह लिखे|

कुछ दिन पाहिले अइसन बयान आईल रहे की पकौड़ा बेच के देश के लोग आपन बेरोजगारी दूर कर सकत बा| बात त एकदम सही बा फिर भी बहुत लोग के बात अच्छा न लागल| बहुत लोग बहुत तरह के तथ्य रखता, कोई डिग्री के बात करत बा त कोई सरकार के दोष देता कोई सामानांतर सरकार के वादा के याद दिलवात बा| मुद्दा जे भी होके लेकिन एक बार फिर कटघरा में खड़ा बा “भारत के शिक्षा प्रणाली” आउर “आपन देश के लोग के मानसिकता”|

हमरा देश के लोग कुछ सिखेला न बल्कि खाली नौकरी ला पढ़े ला लोग और इहे सब समस्या के जड़ बा| रउवा पढ़ल बनी एकर प्रमाण बस राउर डिग्री बा| बचपन में एक कहानी पढले रही, एक कौवा के कही से एगो मोर के पंख मिल जात बा और अपना पंख में लगा के बहुत खुस होता और आपन साथी सब के पास जईला पर मोर के पास जाये के नसीहत सुनत बा और मोर के पास जईला पर उपहास के शब्द| तनिके देर में समझ में आ जात बा की ऊपर के दिखवा से हम मोर न बन पईब| अभी अपन देश के बेरोजगार लोगन के भी एकदम इ कउवा वाला हालत बा डिग्री रूपी पंख लगा के ना नौकरिये मिलत बा, ना पकौड़ा ही बेच सकत बा लोग, कहे की इ मानसिकता बचपन में ही कौनो ठेला वाला के दिखा के ठुसल गईल रहे की ना पढ़ब ता इहे करे के पड़ी| फेर पढ़ल होला के प्रमाण के साथ पकौड़ा कईसे  बचाई?

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