बिन पानी सब सून, कण्ठ भीगे ना चून

  • Post author:
  • Post category:Social Issues
  • Reading time:1 mins read

पानी!!! अक्सर फिल्मों में देखता था, मरता हुआ पानी मांगता है। काइट नाम की ऋतिक रोशन अभिनीत फ़िल्म की शुरुआत में बुरी तरह घायल अभिनेता अपने शिथिल हो चुके शरीर को घसीटता हुआ एक जगह पहुँचता है। सिर्फ पानी के लिए।
पानी जीवन देता है सुना था बहुत ये। पर समझ कल आया। आज के इस आधुनिक युग में पानी को जमीन से निकालने के लिए अनेकों उपकरण हैं। अक्सर ऐसा होता था कि जब बिजली की तीव्रता कम होती थी, पानी निकालने वाली मोटर काम नहीं करती थी। कल भी जब मोटर चलाने पर भी पानी नहीं निकला तो, समझा क़ि बिजली ज्यादा नहीं है। पर जब पूरा दिन पानी नहीं आया तो समझ में आया बात कुछ और ही है। आज मिस्त्री को बुलाया। उसने जमीन से सारे पाइप वगैरह निकाले। पता चला पानी का स्तर नीचे जाने की वजह से पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं आ रहा है। पानी की मोटर को और नीचे तक उतारना पड़ा। इस सब में पूरा दिन निकल गया। कुल मिलाके पुरे दो दिन पानी के बिना जीना बेहाल हो गया।

Also Read-बेरोजगारी – चुक सरकार की या हमारी मानसिकता की मार

पानी का स्तर गिरना हमारे सोचने समझने के स्तर के गिरने का ही एक परिणाम है। मनुष्य की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि जब तक कोई बुरा परिणाम ना मिले गलती नही मानता। एकबारगी हम सोच भी लेते हैं क़ि बिन पानी क्या होगा पर बात हमारे जहन तक नहीं जाती। सिर्फ दिमाग में घुसती है और उसी तरह उड़ के निकल जाती है। देखा जाए तो जिन इलाकों में पहले जहाँ पीने लायक भरपूर पानी था वहाँ आज लोग एक बूँद पानी के लिए तरस रहे हैं।
पानी को फिल्टर करके पीने लायक बनाया जा रहा है। पर क्या यही काफी है? क्या यही हमारे जीवनदाता “पानी” के भाग्य में है कि पहले उसे बहाओ, जितना हो सके मैला करो। फिर उसी मैले पानी को छानकर पीने लायक बनाओ। क्या गंगा पानी आज भी पवित्र बची है? सदियों पहले जब आर्य भारत आये थे तो वो गंगा किनारे बसे। उनका जीवन गंगा पानी से चला। इसलिए उन्होंने इसे पवित्र माना। पर आज क्या आप एक दिन भी गंगा के किनारे बैठ के गंगा के पानी को पिके उससे खाना पकाके रह सकते है?? जवाब आपका “ना” ही होगा।

Leave a Reply