शिक्षा व्यवस्था:- संतोषजनक या जरूरत सुधार की????

आज से जब 15 बर्ष पहले सन 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता स्वरुप “सर्व शिक्षा अभियान” परियोजना प्रारम्भ की गयी थी तो काफी उम्मीदें थी और काफी सारे अच्छे सपने देखे गए थे देश के भविस्य नानिहालो के लिए।।।इसके अंतर्गत मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के प्राबधान को मौलिक अधिकार बनाया गया था।।
#कस्तूरबागांधी बिद्यालय,
#मध्याह्नभोजन,
#निशुल्कपाठ-पुस्तक,
#अभिनवक्रिया-कलाप,

इत्यादि ये सारी योजनाएं शिक्षा के उत्थान के लिए बनायीं गयी थी।।
पर आज कभी मध्याह्न भोजन में शिकायत तो कभी शिक्षको की कमी कभी स्कुल भवनों की जर्जर हालत कभी शिक्षा बिभाग की कमजोरी और कामचोरी जिसके परिणामस्वरूप हम आज भी बहुत पीछे है पूर्व प्रधानमंत्री मान्यनिये अटल बिहारी बाजपेयी जी की दूरदर्शिता से।
क्या आज हमे ये सोचने पर विबस नहीं होना पड़ रहा है कि आज समाज में जो भी गंदगियां है जो भी समस्या है उसके पीछे कही न कही हमारी शिक्षा व्यबस्था की बदहाली जिम्मेदार है,और हमारी नयी पीढ़ी अपनी मौलिक संस्कारो से दूर हो कर के गलत रास्तो की ओर जल्दी ही अपने कदम बढ़ा लेती है ।
तो क्या आज भी हम अपनी सरकार को यु ही कोसते रहेंगे जबकि हम बखूबी जानते है इस बदहाली के लिए सरकार से ज्यादा जिम्मेदार हम खुद है।


क्या अब हमें सोचना नहीं चाहिए.?
क्या हमे अब कड़े कदम नहीं उठाना चाहिए.?

आज कहने को शिक्षा मौलिक अधिकार है पर आज भी पूरी आबादी का पर शायद ये आकड़ें आपके होश उड़ा दे,
30 फिशदी आबादी तो बिलकुल ही अनपढ़ है, जिन्हें न कभी विद्यालयों से वास्ता रहा न जिन्होंने कभी कलम उठाया,
26 फिशदी आबादी अपने प्रारंभिक शिक्षा मतलब पांचबी और आठबी से आगे नहीं पढ़ पाती, 23 फिशदी आबादी दसबी तक की शिक्षा जैसे तैसे प्राप्त कर लेती है, सिर्फ 21 फिशदी आबादी ही बारहवी या उस से आगे की अपनी शिक्षा प्राप्त कर पाती है।।

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क्या ये आंकड़े काफी है, किसी विकाशशील देश को परिभाषित करने के लिए??

कहने को तो हमारे सरकार की काफी योजनाएं रही इन आंकड़ों को सुधारने के लिए, कभी शिक्षा को पंचवर्षीय योजना में शामिल किया गया तो कभी शिक्षा को मौलिक अधिकार माना गया पर नतीजा आज भी वैसा का वैसा भयावाह ही रहा।।
अनेको बाहरी और विदेशी संगठनो ने भी हमारे देश में इस समस्या को दूर करने की पहल की और काफी कारगर कदम उठाया, पर नतीजा ?? बदलाब पर वो भी घोंघा की गति से भी धीरे।।।

संयुक्त राष्ट्र का उपक्रम “यूनिसेफ”, विल गेट्स का संगठन “मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन” हर साल भारत को अरबो रूपए इन नैनिहालो की अच्छी और पोषित परवरिश के लिए देती है, सैकड़ो गैर-सरकारी संग़ठन, काफी बड़े-बड़े उधोयगपति, बड़े राजनेता, खिलाड़ी इन लोगो ने भी बहुत सहयोग दिया और देते रहते है, पर नतीजा कभी भी कही भी नहीं दीखता रहा है, न कोई बदलाव न कोई सुधार
आखिर क्यों??

क्या सिर्फ सरकार खानापूर्ति कर रही है
है सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी की जा रही है हमारे साथ।।

आज शिक्षा का स्तर इतना गिरा हुआ है कि एक औसत प्रबंधन के छात्र को अच्छी नौकरी नहीं मिलती है, न किसी इंजीनियर को उसके कार्यानुरूप कोई अच्छी नौकरी या उसके अनुरूप उसे मेहनताना
नतीजा फिर से “वही ढाक के तीन पात” अच्छे और सुयोग्य युवा अपने देश छोड़ कर बाहरी देशो की ओर रुख कर जाते है और वही जा के अच्छी नौकरी और पैसो के मोह में वही बस जाते है।

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हमने बचपन से पढ़ा था कोई भी देश तब तक विकशित नहीं हो सकता जब तक वहां के नागरिक सभ्य और शिक्षित न हो,
पर आप अब खुद सोचो कि क्या ऐसे भयानक आकड़ें ले के हम कभी विकशित हो सकते है।।

अगर नहीं तो कब तक नहीं????

और

अगर हां तो आखिर कब???

कुणाल सिंह

Kunal_Singh a Counsellor by profession, Motivator and Blogger by passion. A Native of Gaya,Bihar.

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