प्यार सच्चा हो तो क्यूँ मिलता नहीं है

“यक़ीनन वो पढ़ा-लिक्खा नहीं है
जो चेहरा आपका पढ़ता नहीं है

हज़ारों ख़ूबसूरत हैं जहाँ में
कोई भी आपके जैसा नहीं है

न जाने कितने ग़म सहता है इंसाँ
कोई यूँ ही कभी रोता नहीं है

है जाइज़ जंग में , उल्फ़त में सबकुछ
के इसमें धोका भी धोका नहीं है

यहाँ दुनिया नुमाइश की है , लेकिन
उसूलों की यहाँ दुनिया नहीं है

है यकसाँ ज़ाहिरो वातिन हमारा
हमारे चेहरे पै चेहरा नहीं है

हमीं हैं इब्तिदा से इंतेहाँ तक
हमारा किस जगह शिजरा नहीं है

कभी तो पढ़ो आतिफ की आँखों को
क्या तुमको प्यार इसमें दिखता नही है

जान से भी गये हम तुम्हारी खातिर
प्यार सच्चा हो तो क्यूँ मिलता नहीं है

आतिफ रहमान

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